संस्कार भारती (संस्कृति कलासाधकों के माध्यम से) भारतवर्ष में नवजीवन का संचार करना चाहती है।
ॐकार का महामंत्र इस नवजीवन का मूल बीजमंत्र है। सत्य, मंगलमय, सुन्दरता (सत्यं शिवं सुन्दरम्) इसके आयाम हैं व इसको उन्नतिशील व तेजोमय राष्ट्र बनाने में अग्रसर हैं।
संस्कार भारती मधुर तथा हृदय को मंत्रमुग्ध कर एक-दूसरे से जोड़नेवाले स्वर्गिक संगीत का स्वर चाहती है। यह स्वर ही समस्त मानव जाति की एकता व एकात्मता का प्रतीक है, वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को पुष्ट करता है।
कलात्मक, रसपूर्ण, नृत्यविलास व भयंकर उग्र ताण्डव का बोध करनेवाला विभिन्न भाव रस तथा आनन्दमयी कथाओं से परिपूर्ण नाट्यवेद समस्त लोकजीवन को तेज व ओज गुणों से (सिद्ध) संस्कारित करता है।
चौसठ कलाओं से समन्वित परम गुरु (ऋषि) द्वारा नूतनकृत, संस्काररूपी चक्र पर गतिमान व वेदांत समर्थित, चिरंतन व्यवस्था का निर्माण यही (संस्कार भारती का) ध्येय है॥
संस्कार भारती पुरातन अभिलेखों का संरक्षण-संवर्धन करते हुए सप्त स्वरों (सा रे ग म प ध नी) की रचना से प्रत्येक भारतवासी को रससागर में डुबोकर आनन्द-विभोर करना चाहती है। इस प्रकार संस्कार भारती अपनी साधना से भारत में नवजीवन का संचार चाहती है।